Description
ख्वाबो की खिड़कियाँ से ज़हन में झोंकते रहे हमेशा से ही जाने कितने ही एहसास ओ अल्फ़ाज़, जो कभी तलाशते रहे दिल के कोरे कागज़ पर अपने लिए थोड़ी सी ज़मीन तो कभी बेताब हो उठते परिन्दों की तरह उड़ जाने के लिए और दिलों के आसमान पर लफ्ज़ो कि कलाम से अपना मज़मून लिखने के लिए . . .